बिहार और पलायन
bihar aur palayan

जहाँ जन्मी थी देवी सीता, जिस धरती ने दुनिया को पहला सम्राट दिया, जहाँ महाभारत काल मे राजा जरासंध ने राज किया, जहाँ भारत वर्ष का सबसे गौरवशाली साम्राज्य था मगध, जहाँ के नालंदा विश्वविद्यालय मे विश्व भर से शिक्षा ग्रहण करने आते थे बच्चे. ये धरती है महावीर की, चाणक्य की, आर्यभट्ट की, कालिदास की, बुद्ध की, ये धरती है आंदोलन की, ये धरती है बिहार की...
जब इतिहास इतना गौरवशाली था तो वर्तमान इतना खराब कैसे? और जब वर्तमान इतना खराब तो फिर भविष्य से अपेक्षा कैसे???
दरअसल बिहारी और पलायन का बहुत पुराना इतिहास रहा है चाहे बात अंग्रेजो के समय मे गिरमिटिया मजदूर की हो या भिखारी ठाकुर के नाट्य प्रसंगों की, जिसमें पलायन की वजह से पति-पत्नि विरह की वेदना से परेशान रहते हैं.
ऐसा नहीं है कि बिहार मे स्कुल, कॉलेज नहीं है, बहुत है पढ़ाई भी होती है और फिर उसके बाद पलायन..
जहाँ देश का तीसरी सबसे बड़ी जनसंख्या हो और रोजगार, स्वास्थ की व्यवस्था ना हो तो फलते-फूलते बिहार की कल्पना मात्र ही सम्भव है..
यहाँ मानव संसाधन तो है पर संसाधन नहीं, लोग तो है पर स्टार्टअप नहीं, समस्या तो है पर समाधान नहीं..
बिहार की ट्रेन मे सीट वाले से ज्यादे वेटींग वाले गेट पे खड़े रहते हैं , मानो पलायन एक संस्कृति बन गयी है..
जब कोई अपने घर परिवार छोड़ कर दूसरे शहर की ओर चलता है तो पीछे वो अपने गाँव , समाज, खेत, खलिहान सब छोड़ रहा होता है, ऐसा नहीं है कि वो वापिस नहीं आता है वो आता है लेकिन महज मेहमान की तरह..
मै कोई गलतियां नहीं गिना रहा बस सच से वाकिफ़ करा रहा हू.. सोचिए, मै भी सोच रहा हू.
Journalist Sweta
I really liked your article. Hope to see more meaningful articles like this in future. Good work ????????
Ashish Thakur
Thank you so much